रेल यात्रा पर निबंध – Train Journey Essay in Hindi

प्रारंभ की तैयारी
विजयदशमी के अवकाश का पता लग गया था। कक्षा के हम चार मित्रों ने इस बार आगरा घूमने की योजना बनाई। माता-पिता से चोरों ने आज्ञा ले ली थी। हमारे इतिहास पढ़ाने वाले शिक्षक साथ जाने वाले थे।
अतः छुट्टी होते ही दूसरे दिन अपना सामान, ओढ़ने-पहनने के कपड़े और रास्ते के लिए पूड़िया, मिठाई तथा मठरियां लेकर मेरठ के स्टेशन पर जा पहुंचे। हमारे पहुंचने से पहले ही हमारे शिक्षक पहुंच चुके थे।
रेल की यात्रा
मेरठ से दिल्ली और दिल्ली से आगरा जाने का कार्यक्रम था। शिक्षक साथ होने के कारण चिंता न थी। अतः रेल की यात्रा में मन खुशी से झूम रहा था। स्टेशनों पर गाड़ी रूकती और सवारियों का उतरना-चढ़ना, दौड़ना-भागना, कुलियों का आना-जाना हमारे लिए कौतूहल का विषय था।
स्टेशन तथा डिब्बे में भी फल, चाट, बीडी-सिगरेट और चाय बेचने वालों का शोर कानों के पर्दे फाड़े डाल रहा था। यहां गाडियां पर यात्रियों के चढ़ने-उतरने के लिए बना चबूतरा है, जिसे ‘ रेलवे-स्टेशन ‘ कहते हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए स्टेशन पर नल तथा खाने-पीने का सामान मिल जाता है।
यात्रा का आनंद
जब रेल दौड़ती तो उसके साथ-साथ पेड़-पौधे दौड़ते से लगते। कुछ पेड़-पौधे पीछे छूट जाते। गांवों के बच्चे बड़े कौतूहल से रेल के भागने को देख रहे थे। नहरों-नदियों के पुल को पार करती गाड़ी की आवाज अजीब लगती। चरते पशु, उड़ते पक्षी बड़ा आनंद देते।
डिब्बे में बालक, युवक, बूढ़े, बालिकाएं, स्त्री-पुरुष कई प्रदेशों के होने के कारण अनेक प्रकार के कपड़े पहने हुए थे तथा विभिन्न भाषाएं बोल रहे थे। सुन-सुनकर हम चारों कभी हंसते कभी कोतुहल से सुनते थे। बाहर गर्दन निकाले किसी स्वप्न्लोक में विचरण कर रहे थे।
समाप्ति
शाम को 5 बजे हम आगरा कैंट के स्टेशन पर उतरे तो इच्छा थी कि डिब्बे से न उतरे, बैठे ही रहे किंतु हमारे गुरुजी ने कहा, जल्दी उतरो, गाड़ी थोड़ी देर में ही छूटने वाली है। हम समान लेकर जल्दी-जल्दी उतरे और टिकट द्वार पर देकर स्टेशन से बाहर आए तथा रिक्शों में बैठकर एक धर्मशाला की ओर चल पड़े।
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