Speech on Discipline in Hindi – अनुशासन पर भाषण

Speech on Discipline in Hindi – अनुशासन पर भाषण

Speech on Discipline in Hindi – अनुशासन पर भाषण – मेरे आदरणीय सभापति महोदय, अतिथि विशेष________ महोदय, माननीय शिक्षकगण और मेरे प्यारे सहपाठियों। आज मैं आपके सामने अनुशासन पर अपने कुछ बिचार प्रकट करना चहता हूँ। 

Speech on Discipline in Hindi - अनुशासन पर भाषण
Speech on Discipline in Hindi – अनुशासन पर भाषण

अनुशासन का अर्थ है, व्यवस्था को बनाए रखना, नियमों का पालन करना। जीवन के सभी क्षेत्रों में कुछ ना कुछ नियम अवश्य होते हैं। उन नियमों पर चलना ही अनुशासन है। घर में भी हमें कुछ नियमों का पालन करना होता है; जैसे बड़ों की आज्ञा का पालन करना, बच्चों का पालन पोषण करना, वस्तुओं को अपनी जगह पर रखना, भोजन पकाना और सही समय पर भोजन करना। 

इसी प्रकार नौकरी पर जाने वालों के लिए सही समय पर पहुंचना, कार्यों को ठीक प्रकार से करना अनुशासन का ही रूप है। इसी प्रकार अन्य स्थानों, विभिन्न उद्योगों, खेलो और जीवन के कुछ नियम होते हैं। नियमों का पालन करना ही अनुशासन कहलाता है।

नियमों का चलाना ही प्रशासन होता है और उन पर चलना अनुशासन कहलाता है। जैसे कि विद्यालय में प्रशासनिक अधिकारी प्रधानाचार्य होता है। वह शिक्षा विभाग द्वारा प्राप्त निर्देशों के अनुसार अध्यापकों की सहायता से कुछ नियमों का निर्माण करता है जिन पर सभी को चलना होता है। 

इनके अतिरिक्त पढ़ाई, खेल, यात्रा, परीक्षा आदि विभिन्न क्रियाओं व कार्यों के अपने-अपने अनेक नियम होते हैं जिनकी लिखित सूचना तथा घोषणा समय-समय पर की जाती रहती है। नियमों का समुचित रूप से पालन करने पर ही विद्यालय सुख-शांति से चलता है और इसी में उसके विकास का रहस्य छिपा रहता है।

अनुशासन की भावना को सबमें भरने के लिए तीन पग उठाने आवश्यक होते हैं – पहले तो नियम की उपयोगिता, दूसरे नियम का पालन करने वालों में सर्वश्रेष्ठ को पुरस्कार, तीसरे नियम तोड़ने वालों के लिए दंड की व्यवस्था।

पुरस्कार देने से प्रोत्साहन बढ़ता है। पुरस्कार शाबाश, प्रशंसा करना अथवा वस्तु देने के रूप में किसी प्रकार का भी हो सकता है। ध्यान रखना चाहिए कि पुरस्कार पाने मात्र के लिए नियम पालन ना हो। नियमों का उल्लंघन करने वालों को आर्थिक, कभी-कभी शारीरिक और सामाजिक दंड भी दिया जाता है। किसी भी प्रकार का दंड देते समय अधिकारी के हृदय में घृणा और क्रोध आदि का भाव नहीं होना चाहिए, बल्कि उसके सुधार की कामना होनी चाहिए।

जिस जगह में सभी कार्य अनुशासन पूर्वक होते हैं, वहां स्वास्थ्य, सुंदरता, शिक्षा, आदि गुणों का विकास होता है। ऐसी जगह में लोग सभ्य और श्रेष्ठ नागरिक बनते हैं।

धन्यवाद 

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