लोभ का फल | Moral Story In Hindi
लोभ का फल | Moral Story In Hindi – एक राजा धन का बहुत लोभी था। उसे न तो अपनी प्रजा की चिंता थी और न ही किसी और बात की। रात-दिन धन के लिए चिंतित रहता था। उसके पास धन की कमी नहीं थी। उसका खज़ाना स्वर्ण मुद्राओं से भरा हुआ था।

एक दिन राजा अपने खजाने में बैठा स्वर्ण मुद्राएँ गिन रहा था-एक लाख, दो लाख, चार लाख …।
स्वर्ण मुद्राओं को तिज़ोरी में रखते हुए वह सोचने लगा कि कितना अच्छा होता यदि ये मुद्राएँ रात-भर में दुगुनी हो जाती।
उसी समय पुष्प-माला पहने एक देव उसके खज़ाने वाले कमरे में आए ओर पूछा, “ क्यों राजा! अभी और धन चाहिए क्या?” राजा ने उत्तर दिया, “महाराज! यह तो कुछ भी नहों। मैं तो चाहता हूँ कि ये स्वर्ण मुद्राएँ रात-भर में दुगुनी हो जाएं।”
देव ने कहा, “ हो जाएगी ”! यह कहकर देव अदृश्य हो गए।
राजा की खुशी की सीमा न रही। वह रात-भर करवटें बदल-बदल कर जागता रहा। सवेरा होते ही खजाने में
जाकर देखा तो उसकी जमा स्वर्ण मुद्राएँ दुगुनी हो गई थीं। फिर क्या था। राजा अपनी स्वर्ण मुद्राएँ दोगुनी देखकर प्रसन्न हुआ। वह सोचने लगा कि यदि इस समय देव यहाँ होते तो मैं उनके पैर चूम लेता।
उसी समय कमरे के दरवाज़े पर देव खड़े मुस्करा रहे थे। राजा ने देव को धन्यवाद दिया ओर कहा, “ भगवन्। हम आपकी कृपा को कभी नहीं भूलेंगे।” देव ने पूछा, “राजन! तुम्हें और धन चाहिए?” राजा ने हाथ जोड़कर कहा की, “ यदि आप इतने कृपालु हैं तो मुझे ऐसा वरदान दें कि मैं जिस भी वस्तु को छू दूँ वह सोने की हो जाए।”
देव ने कहा, “तथास्तु। ” अर्थात् ऐसा ही होगा। यह कहकर देव अदृश्य हो गए। अब तो राजा खुशी से पागल हो गया। उसने तुरंत अपनी मेज़, कुर्सियों को छूकर देखा, वे सब छूते ही सोने की हो गईं। अब तो राजा दौड़-दौड़ कर अपनी हर वस्तु को छूने लगा। छूते ही सारी वस्तुएँ सोने को होती गईं।
राजा की खुशी का ठिकाना ही न रहा। वह दौड़-दौड़कर अपने महल को दीवारों, गुंबदों और फाटकों को छूने लगा। महल को चारों ओर से छूकर राजा ने बाहर खड़े होकर देखा, तो उसका सोने का महल सूर्य की थूप में ऐसे
चमक रहा था जैसे सुनहरे कमल का फूल।
अब तो राजा सचमुच पागल हो गया। वह दौड़कर अपने बगीचे में गया और सारे फूल-पोधों को जल्दी-जल्दी छूने लगा। गुलाब, गेंदा, चंपा और चमेली सबके सब सोने के हो गए।
राजा अपने बगीचे के बाहर खड़ा होकर ज़ोर-ज़ोर से हस-हस कर कहने लगा, “दुनिया में मुझसे अधिक धनवान ऐसा कौन राजा है जिसका महल सोने का, बगीचा सोने का और सब कुछ सोने का हो! ”
बहुत समय बाद राजा अपनी भूख-प्यास मिटाने के लिए अपने महल में गया। उसने कहा मेरे लिए गरम-गरम हलवा और एक गिलास पानी लाओ। मुझे बहुत भूख लगी है।” दूसरे ही क्षण राजा के सामने गरम हलवा और एक गिलास पानी आ गया। राजा ने जल्दी से गरम हलवा मुँह में डाला, परंतु हाय! यह क्या? हलवा भी सोने का हो गया। भूखा राजा सोना कैसे खाए? पानी का गिलास मुँह से लगाया तो छूते ही पानी भी सोने का हो गया।
राजा अब क्या करे? क्या खाए, क्या पीए? जिस वस्तु को वह हाथ लगाए, वही सोना हो जाए। अंत में भूख-प्यास से तड़प-तड़प कर राजा रोने लगा। तभी उसकी नन्ही बेटी दौड़ी-दौड़ी आई। राजा ने बेटी को उठाकर गोद में बैठा लिया तो वह भी सोने की हो गई। अब तो राजा एकदम बिलबिला उठा।
राजा के रोने की आवाज़ सुनकर रानी महल में दौड़ी आई। राजा उससे लिपटकर रोने लगा तो रानी भी सोने की हो गई। “हे भगवान! अब मैं क्या करूँ? तुमने मुझे सोने का महल, सोने का बगीचा, सोने की बेटी और सोने की रानी दी। यहाँ तक कि खाने-पीने के लिए भी सोना दे दिया। परंतु भगवान! इससे मैं जीवित नहीं रह सकता।
मुझे मेरी बेटी और रानी वापस दे दो। दो सूखी रोटी के बदले यह सोने का संसार और मेरा सब कुछ ले लो।” राजा अपनी रानी और बेटी की सोने की मूर्तियों पर सिर पटक-पटककर रोने लगा। तभी पुष्पमाला पहने देव ने राजा के कमरे में प्रवेश किया। “कहो राजन! तुम्हें अब और कितना सोना चाहिए? ”
बेचारा राजा दौड़कर देव के पैरों पर गिर पड़ा। “हे भगवन्! दया करो। मुझे सोना नहीं चाहिए। मेरी बेटी, मेरी रानी और दो सूखी रोटियों के सिवा मुझे ओर कुछ नहीं चाहिए। दया करो भगवन्! देव ने हंसते हुए कहा, “राजन! लालच बुरी बला है। लो! यह जल अपनी बेटी और रानी पर छिड़क दो।
वे पहले जैसी हो जाएँगी। यह जल जिस वस्तु पर छिड़क दोगे वह वस्तु पहले जैसी हो जाएगी। मैं अब अपना वरदान वापस लेता हूँ। फिर कभी जीवन में लोभ मत करना।” यह कहकर देव अदृश्य हो गए।
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