मेले का वर्णन पर निबंध | Essay on Visiting a Fair in Hindi

मेले का वर्णन पर निबंध | Essay on Visiting a Fair in Hindi

मेले का वर्णन पर निबंध | Essay on Visiting a Fair in Hindi
मेले का वर्णन पर निबंध | Essay on Visiting a Fair in Hindi

प्रस्तावना 

भारत मेलों, त्यौहारों, व्रत-उपवासों तथा तीर्थ स्थानों का देश है। प्राचीन काल से तीर्थों, नदियों, पर्वतों, सागरों तटों, गाँवों और नगरों में धार्मिक मेले हर त्यौहार के अवसर पर लगते हैं। ये मेले अधिकांशतः वार्षिक होते हैं। पुराने समय में जब आवागमन पैदल, गाड़ियों, ऊँटों, घोड़ों और रथों आदि से होता था तो वर्ष में कम से कम परिजनों, परिचितों, संबंधियों और मित्रों का मिलन, भेंट एक बार तो हो जाए तथा एक दूसरे की कुशल क्षेम प्राप्त कर सकें। 

अपने क्षेत्र, समाज बंधुओं का समाचार और इतिहास जानने का साधन और माध्यम से मेले ही थे। इनमें आने वाले साधु-संतों, धार्मिक पुरुषों और विद्वानों को अपने-अपने क्षेत्र में आने का निमंत्रण इन मेलों में ही दिया जाता था। मिलने का स्वरूप ही मेला है अर्थात्‌ जिसमें मिलन हो, वह मेला है। 

नौचंदी मेला क्यों?

‘नौचंदी’ शब्द ‘नवचंडी’ का तदभव रूप है। भारत के उत्तरी भाग में विशेषतः जो संवत चलता है और सर्वमान्य भी है, वह विक्रमी संवत जो महाराज चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शौर्य, पराक्रम और स्वदेश के धर्म एवं संस्कृति के रक्षक सम्राट के राज्यतिलकोत्सव की याद दिलाता है और इतिहास की उस घटना का स्मरण कराती है जब शकों ने टिड्डी के समान इस देश पर आक्रमण करके निरीह और भीषण अत्याचार किया था। 

धर्म और संस्कृति पर आए इस महासंकट से देश को विक्रमादित्य ने अपने अपूर्व शौर्य से शकों को परास्त ही नहीं किया था इस देश से बाहर खदेड़ दिया था। तभी से यह विक्रमी संवत होली के 15 दिन बाद चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। तभी से यह ‘नवचंडी’ की पूजा अर्चना में नौ दिन के लिए मेला लगता था जो चंडी रूप दुर्गा के नौ नामों से आधार पर नौ रूपों की पूजा का विधान था।

रामनवमी के दिन राम के जन्मदिन को हर्षोल्लास के साथ मनाने पर पूरा हो जाना था। धीरे-धीरे यह मेला लोगों के लिए मनोरंजन तथा व्यापारियों के लिए लाभकारक सिद्ध होने लगा। कालांतर में अवधि बढ़ते-बढ़ते अब तो यह नौचंदी का मेला एक मास तक लगता है। 

नौचंदी मेले का महत्व

नौचंदी मेले का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, सामुदायिक और मनोरंजन के कारण आज भी है। पहले यद्यपि यह मेला धार्मिक ओर सांस्कृतिक रूप ही लिए था। नौ दिन तक भक्त लोग चंडी दुर्गा की पूजा करते थे। पुराना चंडी का मंदिर आज भी अपनी ऐतिहासिक गाथा को अपने में संजोए है। आधुनिक वातावरण में नौचंदी मेला मनोरंजन प्रधान एक नुमाइश अधिक हो गई है। सारे देश से व्यापारी अपनी-अपनी दुकाने लेकर आते हें। मेरठ नगर का प्रशासन इस मेले की पूरी व्यवस्था करता है। 

नौचंदी का मेला अब एक मास तक उत्तरी भारत के लोगों के लिए विशेष मनोरंजन का साधन बन गया है। कलात्मक रीति से बाजारों की व्यवस्था, बिजली की विशेष व्यवस्था एवं आकर्षक सज्जा तथा अनेकों प्रकार के पुष्प उगाकर प्रकृति के सौंदर्य और मधुरता से सँवारा हुआ यह मेला सभी के लिए रातभर घूमने, खाने पीने और सर्कस, सिनेमा तथा पटेल मंडप में नित्य आयोजित विभिन्‍न सुंदर कार्यक्रमों को देखने का केंद्र है। जीवनोपयोगी एवं मनोरंजन तथा खाने-पीने की सभी वस्तुएँ यहाँ आती हें। 

उपसंहार

नौचंदी शिशुओं, बालकों, तरुणों और बूढ़े सत्री-पुरुषों के लिए विशेष आर्कषण, खरीद फरोख्त और मनोरंजन का मनोरम मेला है। यहाँ की दुकानों, सज्जा, रौनक, विविध रूपा साम्रगी के आकर्षण में लोग दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं। विज्ञान के बल पर बने आधुनिकतम सर्कस, खेल-खिलौने, नवीनतम बस्त्रों का भंडार यहाँ रहता है। नौचंदी मेला अपने युग का सदैव विशेष आकर्षण रहा है।  

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