बाल गंगाधर तिलक पर निबंध | Essay on Bal Gangadhar Tilak in Hindi

प्रस्तावना
अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने का कार्य महात्मा गाँधी से पूर्व जिनके नेतृत्व में चल रहा था उस महापुरुष का नाम था बाल गंगाधर तिलक। उस समय देश की आजादी के लिए कार्य करने वाली राजनैतिक संस्था केवल काँग्रेस थी। सारे देशवासी इसी के नेतृत्व में स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रहे थे।
उस समय काँग्रेस में दो विचार-धाराएँ थीं- एक नरम दल जो निवेदन, प्रार्थना, खुशामद के बल पर अंग्रेजों से स्वराज्य लेना चाहते थे। दूसरी विचारधारा का नाम गर्म दल था जो किसी भी तरीके से स्वराज्य की प्राप्ति में विश्वास रखता था। बाल गंगाधर तिलक इसी विचार के थे। गाँधी जी के भारत आने से पूर्व काँग्रेस का नेतृत्व तिलक के हाथ में था।
जीवन परिचय
तिलक जी का जन्म 1856 ई० में एक महाराष्ट्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपनी शिक्षा समाप्त कर 1880 में देश की आजादी के लिए संघर्ष क्षेत्र में कूद पड़े। तिलक अपने समय के जागरुक नेता, सफल लोकनायक तथा धर्म-समाज और सांस्कृतिक क्षेत्र के प्रभावशाली व्यक्ति थे।
उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्यवादी नीति का विरोध अपने ‘केसरी’ पत्र द्वारा किया। ‘केसरी’ पत्र ने समाज में अंग्रेज-विरोध की हवा खड़ी कर दी। तिलक जी अपने विचारों के प्रसार-प्रचार के लिए ‘केसरी’ का संपादन मराठी तथा अंग्रेजी भाषा में किया। इनके विचार अंग्रेजों को इतने उग्र लगे कि एक लेख के आधार पर 101 दिन का कारावास मिला।
तिलक जी का विश्वास था कि जब तक जन शक्ति का प्रखर आंदोलन नहीं होगा तब तक आजादी नहीं मिलेगी। उन्होंने गौ वध बंदी समितियों, अखाडे और लाठी क्लबों की स्थापना की। गणपति और शिवाजी उत्सव के द्वारा जन-जागृति के कार्यक्रम प्रारंभ किए। तिलक जी का कार्य क्षेत्र अब महाराष्ट्र से निकल कर सारा देश हो गया।
कार्य एवं महत्व
राष्ट्रीय चेतना जगाने में अग्रणी तिलक को 1897 में राजद्रोह का मुकदमा चलाकर सरकार ने 18 मास का कठोर कारावास दिया। 1905 में वायसराय कर्जन ने बंगाल का बँटवारा करना चाहा। इस विषय पर तिलक जी ने जो आंदोलन खड़ा किया, उसका परिणाम था कि अंग्रेज चाहकर भी बंगाल का विभाजन न कर सके।
इसी समय बंगाल में विपिन चंद्र पाल और पंजाब में लाला लाजपत राय का नाम अंग्रेजी राज्य के विरोधी नेताओं में था। अतः सारे देश में इन तीनों का नाम लाल-बाल-पाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1908 में तिलक को पुनः 6 वर्ष का कारावास हुआ और मांडले जेल में रखा गया।
इनके लेखों, उग्र भाषणों तथा कार्यों के कारण तिलक इतने प्रसिद्ध हुए कि न केवल भारत वरन् विश्व के स्वतंत्र देशों तक तिलक की ललकाह गूँज गई ”स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है ओर मैं इसे लेकर रहूँगा।” जनता-जनार्दन ने एक स्वर से तिलक जी को अपना सच्चा नेता मान लिया और वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के नाम से प्रसिद्ध हुए। मांडले की जेल में ही तिलक जी ने गीता का भाष्य लिखा। जो ‘गीता-रहस्य’ नाम से आज भी देशवासियों को कर्म करने का पाठ सिखाता है।
उपसंहार
देश का दुर्भाग्य था कि ईश्वर ने ऐसे नेता को 1921 में हमसे छीन लिया। लोकमान्य तिलक अपने देश-प्रेम, धार्मिक और सामाजिक कार्यों के माध्यम से जन जागृति के लिए इतिहास में सदैव याद किए जाएँगे। उनका यश रूपी शरीर हमें देश कार्यों की प्रेरणा देता रहेगा।
Also Read
- स्वावलंबन पर निबंध | Essay on Self Reliance in Hindi
- ऑनलाइन शिक्षा पर निबंध | Short Essay on Online Classes in Hindi
- एक अच्छा भाषण कैसे लिखें और दें? How to write and deliver a good speech in Hindi?
- मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध | Essay on Modern Means of Entertainment in Hindi
- शिक्षा पर कोरोना वायरस का प्रभाव निबंध | Essay on Impact of Coronavirus on Education in Hindi