Essay on Advertisement in Hindi – विज्ञापन पर निबंध

Essay on Advertisement in Hindi – विज्ञापन पर निबंध

Essay on Advertisement in Hindi – विज्ञापन पर निबंध – वर्तमान युग में पैसा कमाना ही मानव जीवन का लक्ष्य बन चुका है। अनेक क्षेत्रों में यह परम लक्ष्य भी माना जाता है। सबको आर्थिक समृद्धि की लालसा होती है। शीघ्रता से सुख-सुविधाओं की वस्तुएं किस प्रकार जुटा लें, बस यही चिंतन दिन-रात लगा रहता है। नौकरी चाहने वाला हो अथवा उत्पादक, इसे हेतु सभी एक माध्यम विशेष को अपनाते हैं, वह है प्रचार। प्रचार अर्थात विज्ञापन

Essay on Advertisement in Hindi - विज्ञापन पर निबंध
Essay on Advertisement in Hindi – विज्ञापन पर निबंध

जिधर देखिए-सुनिए प्रचार आपको दिखाई देगा। इसके माध्यम से सेवाएं, वस्तुएं या जानकारियां अपना लक्ष्य तथा बाजार खोजती हैं और नौकरी तथा व्यवसाय को तीव्रगति से आगे बढ़ने, विकसित होने का अवसर प्राप्त कराती है। व्यवसाय के लिए विज्ञापन एक ऐसी महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती है जो वस्तुओं को खरीदारों तक पहुंचाती है। 

यह नौकरी को बेरोजगारों एवं वर को कन्या से मिलाती है। खोई वस्तुएं इनके द्वारा मिल जाती है और कार्यक्रमों के लिए दर्शक बैठे-बिठाए ही मिल जाते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि विज्ञापन दो बिंदुओं का परिचय करवाकर अपरिचित की दीवार गिराता है। आज के युग में इस कला को खूब मान्यता मिल रही है।

विज्ञापनों के अनेक प्रकार हैं जैसे व्यवसायिक विज्ञापन, आत्मविज्ञान, वैवाहिक विज्ञापन, व्यक्ति विज्ञापन, विचार विज्ञापन आदि। अनेक प्रकार की नौकरियां एवं उत्पादनों को व्यवसायिक विज्ञापनों के अंतर्गत माना जाता है। इसके माध्यम से उत्पादक, उत्पाद की महत्त्वपूर्ण जानकारी ग्राहकों को देते हैं। इससे वे उपयोगिता की ओर उपभोक्ता का ध्यान आकर्षित करते हैं। 

विभिन्न विज्ञापन एजेंसियों ने बाजार में अपना कारोबार जमाया हुआ है। इनके अपने रिकॉर्डिंग रूम, आर्केस्ट्रा, मेकअप मैन, मॉडल, स्टूडियो व कैमरे आदि होते हैं। ये उत्पादक की इच्छानुसार कुछ मिनटों की विज्ञापन फिल्म बनाकर उसे दे देते हैं। उत्पादक उनका उपयोग सिनेमा, टेलीविजन, रेडियो, पत्र-पत्रिकाओं आदि में करके अपने व्यवसाय को लोकप्रिय बनाने का प्रयत्न करते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां विज्ञापन के लिए अपने बजट में समुचित प्रावधान रखती है और अच्छी विज्ञापन-एजेंसियों से सहायता लेती है।

उत्पादन को लोकप्रिय बनाने के लिए उत्पादक विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ उत्पादक फिल्मी कलाकारों द्वारा अपनी वस्तुओं में रुचि लेना, स्पर्श करवाना, अपनाना दिखाकर प्रचार कार्य करवाते हैं। इस माध्यम से उत्पादन सामान्य से विशेष तक तथा सड़कों से घरों तक पहुंच जाता है। 

केवल व्यापारिक संस्थाएं ही विज्ञापन का महत्व समझती हो, यह बात नहीं है। विभिन्न राजनीतिक, धार्मिक एवं साहित्यिक संस्थाएं भी विज्ञापन कला के माध्यम से अपना प्रचार-प्रसार करती हैं। ये संस्थाएं अपनी विचारधारा के प्रचार के लिए पत्र पत्रिकाएं प्रकाशित करती हैं।

यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि विज्ञापन कला से जहां उत्पादकों और सेवायोजकों आदि का हित होता है वही समाज का कुछ अहित होने की संभावना बनी रहती है। इसके दुरुपयोग से बचना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए विज्ञापन एजेंसियों या विज्ञापन माध्यमों को समाज हित के विचार को भी लेकर चलना होगा। समाजहित में विज्ञापन की परीक्षा के बाद ही उसके प्रकाशन या प्रसारण की अनुमति मिलनी चाहिए। वे समाज में यह प्रचार कर सकते हैं कि विज्ञापनों में किसी असत्य तथ्यों के पाए जाने पर उस विज्ञापन-माध्यम को सूचित कर सकते हैं। इस प्रकार विज्ञापन कला के दुरुपयोग पर पर्याप्त सीमा तक रोक लगाई जा सकती है। 

सरकार के संबंधित विभाग को भी इस दिशा में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए। उसे विज्ञापनदाता की नियत व उत्पादित वस्तु की परख कर लेनी चाहिए। जिस प्रकार अपने लिए सही माल खरीदने के लिए सरकार के पास अपना तंत्र होता है, उसी प्रकार ऐसे तंत्र का निर्माण कर उसे जनहित में विज्ञापित वस्तुओं की परख करनी चाहिए। अच्छा हो कि उत्पादक व विज्ञापनदाता समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व का बोध करके ऐसे विज्ञापन ही प्रकाशित न करें। इसे उनकी साख बढ़ेगी और वस्तुओं व सेवाओं की बिक्री सकारात्मक रूप ले लेगी।

Also Read

Leave a Comment