चेहल्लुम क्यों Manate है : Chehlum Kyu Manate Hai

चेहल्लुम क्यों Manate है : Chehlum Kyu Manate Hai

चेहल्लुम क्यों Manate है : Chehlum Kyu Manate Hai – तो आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे कि चेहल्लुम (Chehlum) क्यों मनाया जाता है? अगर आप भी इस बारे में जानना चाहते है, तो आप सभी बने रहे हमारे साथ इस आर्टिकल के अंत तक!

चेहल्लुम क्यों Manate है : Chehlum Kyu Manate Hai
चेहल्लुम क्यों Manate है : Chehlum Kyu Manate Hai

चेहल्लुम क्या है | Chehlum Kya Hain?

चेहल्लुम एक इस्लामी त्यौहार है जो शीया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह त्यौहार हजरत इमाम हुसैन की शहादत के चालीसवें दिन मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, चेहल्लुम सफर महीने की 20 तारीख को होता है।

चेहल्लुम को अरबईन भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “चालीसवां दिन”। यह एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो शीया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन, वे इमाम हुसैन के बलिदान को याद करते हैं और उनकी शहादत को श्रद्धांजलि देते हैं।

हजरत इमाम हुसैन पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे और तीसरे इमाम थे। वे इराक के कर्बला शहर में 680 ईस्वी में यजीदी सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उनके साथ उनके 72 अनुयायी भी शहीद हो गए थे।

चेहल्लुम के दिन, शीया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय के लोग इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। वे इमाम हुसैन की कहानियों को सुनते हैं, उनकी याद में प्रार्थना करते हैं, और उनके नाम पर दान करते हैं।

चेहल्लुम के दिन, शीया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय के लोग इमाम हुसैन की याद में जुलूस निकालते हैं। ये जुलूस अक्सर बड़े पैमाने पर होते हैं और इनमें लाखों लोग शामिल होते हैं। इन जुलूसों में इमाम हुसैन की कब्र की प्रतिकृतियां होती हैं, जिन्हें ताज़िया कहा जाता है। जुलूस के दौरान, लोग इमाम हुसैन के बलिदान को याद करते हैं और उनके लिए दुख मनाते हैं।

चेहल्लुम एक महत्वपूर्ण इस्लामी त्यौहार है जो शीया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत महत्व रखता है। यह त्यौहार हजरत इमाम हुसैन के बलिदान और उनके मूल्यों की याद दिलाता है।

चेहल्लुम क्यों मनाते है | Chehlum Kyu Manate Hain?

चेहल्लुम एक मुस्लिम त्योहार है जो इमाम हुसैन की शहादत के चालीसवें दिन मनाया जाता है। इमाम हुसैन, पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे और इमाम अली के बेटे थे। वे एक धर्मनिष्ठ और बहादुर व्यक्ति थे, जिन्होंने इस्लाम के लिए युद्ध में अपने जीवन का बलिदान दिया।

चेहल्लुम को अरबईन भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “चालीसवां दिन”। यह एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो शीया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन, वे इमाम हुसैन के बलिदान को याद करते हैं और उनकी शहादत को श्रद्धांजलि देते हैं।

चेहल्लुम के दिन, शीया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय के लोग इमामबाड़ों (मजारों) में इकट्ठा होते हैं और इमाम हुसैन की कहानियां सुनते हैं। वे उनके जीवन और बलिदान के बारे में बात करते हैं।

कुछ देशों में, चेहल्लुम के दिन बड़े जुलूस निकलते हैं। इन जुलूसों में इमाम हुसैन की कब्र की प्रतिकृतियां होती हैं, जिन्हें ताज़िया कहा जाता है। जुलूस के दौरान, लोग इमाम हुसैन के बलिदान को याद करते हैं और उनके लिए दुख मनाते हैं।

चेहल्लुम एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो इमाम हुसैन के बलिदान को याद करता है। यह एक ऐसा दिन है जब शीया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय उनके जीवन और बलिदान को श्रद्धांजलि देते हैं।

चेहल्लुम मनाने के कुछ कारण निम्नलिखित हैं:

  • इमाम हुसैन के बलिदान को याद करना और उनकी शहादत को श्रद्धांजलि देना।
  • इमाम हुसैन के जीवन और शिक्षाओं को याद करना।
  • इस्लाम के लिए सच्चाई और न्याय के लिए लड़ने के लिए प्रेरित होना।
  • शांति और सद्भाव के लिए प्रार्थना करना।

चेहल्लुम एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो शीया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय के लिए आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों तरह से महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा दिन है जब वे अपने धर्म और अपने पैगंबर के वंशजों के लिए अपना सम्मान व्यक्त करते हैं।

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